बुद्ध! बोधि का ही उदय सचमुच सर्वजनीन। भेदभाव से हो रहित, शून्यवाद में लीन।।

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बुद्ध-पूर्णिमा के अवसर पर विशेष

शुद्ध-बुद्ध विश्वात्म विभु करुणायतन! प्रणाम।
प्रेम-क्षमा-औदार्य घन! मंगलप्रमन! प्रणाम।। 4285।।

प्रमथाधिप-सी साधना, जग से नहीं तटस्थ।
सबके दुख-निर्वाण-हित अविरत आकुल, स्व-स्थ।। 4286।।

जो जीवन में साध ले पूत मार्ग अष्टांग।
ऋद्धि-सिद्धि सब संचरित बाह्याभ्यन्तर सांग।। 4287।।

हुए सिद्ध सिद्धार्थ, तनु तपा पूत, मन शुद्ध।
हय हृषीक-चय संयमित, पावन चरित, प्रबुद्ध।। 4288।।

पूर्ण पुरुष पावन हृदय, सदय सरल निर्वेद।
प्राणि जगत् प्रति प्रेमवश कहीं न किंचित् भेद।। 4289।।

पीड़ित-मर्दित-भिक्खु हित खुला हृदय का द्वार।
पदाक्रान्त पशुतुल्य-हित करुणा के अवतार।। 4290।।

पतित न कोई नीच अघ, नहीं घृणा के योग्य।
कहा बुद्ध ने शुद्धमति–पायें सब आरोग्य।। 4291।।

तेजजोज-आलोक शुचि अन्तःकरण-प्रकाश।
क्षमा-शील जिसमें मही, सदय अनन्ताकाश।। 4292।।

शान्ति शुभानन शोभती, निर्विकार दस द्वार।।
मुद्राएँ इङ्गित ककुभ, कान्ति-क्षान्ति साकार।। 4293।।

जिसको तुमने छू दिया, छूटे छल, खल-पाप।
शुद्ध-बुद्ध हो जाय जो, मिटे शोक-संताप।। 4294।।

नीति-नियम पालन प्रथम, सम्यक् धृति-संकल्प।
आर्य सत्य को जान ले,सम्यक् वाक् विकल्प।। 4295।।

दृष्टि, कर्म, आजीविका, योग और व्यायाम।
सुस्मृति और समाधि भी सम्यक् हो आयाम।। 4296।।

परमहंस शुद्धात्म तव, तनिक न तुझमें ‘गिद्ध’।
पूर्णकाम-निष्काम तुम–ऐसे साधक सिद्ध।। 4297।।

तुझमें तनिक न एषणा, जाया-माया त्याग।
व्यायत बन विश्वात्म तुम, निर्विकार अनुराग।। 4298।।

जान लिया दुख और क्या दारुण दुख का हेतु।
बुद्ध सदा निश्छल अकल, अमलानन्दी सेतु।। 4299।।

वाणी कल्याणी निहित त्रिपिटक सत् का सार।
पंचशील शुद्धाचरण धार सुखी संसार।। 4300।।

लोकायत-लोकोन्मुख ब्राह्मणवाद-विरुद्ध।
सत्य, अहिंसा, प्रेम, तप, त्याग, विराग विशुद्ध।। 4301।।

युद्ध नहीं, इस देशहित बुद्ध-शील-संस्कार।
आज और कल के लिए नेह-सजल ‘नीहार’।। 4302।।

कितनी सारी खूबियाँ, खुले पतन के द्वार।
घुस आया हठयोग जब, तन्त्र और अभिचार।। 4303।।

बुद्ध! बोधि का ही उदय सचमुच सर्वजनीन।
भेदभाव से हो रहित, शून्यवाद में लीन।। 4304।।

रचनाकार- अमलदार नीहार, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया

रचनाकाल : 16 मई, 2022 (बुद्ध जयन्ती) बलिया, उत्तर प्रदेश

[नीहार-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव (षष्ठ हिल्लोल) अमलदार नीहार ]

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