पित्र मोक्ष अमावस्या एवं 17 सितम्बर विश्वकर्मा पूजन का अद्भुत संयोग
उज्जैन (भारत रेघाटे, ताम्रकार)। श्रीराम कथा व्यास भगवान चैतन्य बापू (विश्वकर्मा वंशीय) उज्जैन ने कहा है कि विश्वकर्मा समाज लोहा, लकड़ी, सोना, तांबा, पीतल व स्थापत्य कला का काम करने वाले सभी लोग प्रत्येक माह की अमावस्या को अपना कार्य बंद करके औजारों का पूजन एवं भगवान विश्वकर्मा की आराधना करते हैं। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, दैवज्ञ सभी लोग अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। 17 सितम्बर को पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा मनाया जाता है जो हमेशा पित्र पक्ष में ही पड़ता है। इस वर्ष यह तिथि पित्र मोक्ष अमावस्या को पड़ रही है। यह एक अद्भुत व शुभ संयोग है।
भगवान चैतन्य बापू ने बताया कि हिन्दुस्तान में पहला लोहे का विशाल हावड़ा ब्रिज का निर्माण हुआ था और 17 सितम्बर को ही भगवान विश्वकर्मा के पूजन के साथ उस ब्रिज का उद्घाटन हुआ था। तभी से 17 सितम्बर को विश्वकर्मा पूजा मनाया जाने लगा। इस दिवस को विश्वकर्मा पूजा दिवस नाम दिया गया। यह सच है कि 17 सितम्बर पूजन दिवस कहीं भी शास्त्र में वर्णित नहीं है। यह सवा सौ वर्ष पहले अंग्रेजों की चलाई गई परम्परा है। पर हम सभी को खुशी है कि किसी अंग्रेज ने भगवान विश्वकर्मा के पूजन दिवस की परम्परा को प्रारम्भ किया जिसका निर्वहन हम करते आ रहे हैं और करते भी रहना चाहिये।
17 सितम्बर को अमावस्या पड़ना अद्भुत व शुभ संयोग है। सभी विश्वकर्मा वंशियों को चाहिये कि प्रातःकाल अपने ज्ञात-अज्ञात समस्त पितरों को तर्पण करने के बाद हमारे सबसे बड़े पित्र जिनकी हम सन्तान हैं, भगवान विश्वकर्मा का ध्यान कर तर्पण करें। दोपहर 12 बजे से हम सभी लोग विश्वकर्मा पूजन दिवस का सम्मान करते हुए पूजन दिवस हर वर्ष की भांति मनाएं। जैसा कि सभी जानते हैं कि कोरोना वैश्विक महामारी ने पूरी दुनिया को तबाह कर रखा है। ऐसे में हम सभी प्रशासन के नियमों का अनुपालन करते हुये हर्षोल्लास के साथ 17 सितम्बर को विश्वकर्मा पूजा मनाएं।