56 वर्षीय कान्ति देवी विश्वकर्मा ने वाहनों की मरम्मत से संभाली जीवन की गाड़ी
सिंगरौली। सिंगरौली जिले के मोरवा मेन रोड निवासी 56 वर्षीय कान्ति देवी विश्वकर्मा अपने हौसलों की उड़ान से वाहन मरम्मत के क्षेत्र में क्रान्ति ला रही हैं। भारी डीजल वाहन के मरम्मत में सिद्धहस्त कान्ति विश्वकर्मा क्षेत्र में भौजी मिस्त्री के नाम से विख्यात हैं। जीवन में आने वाले तमाम झंझावतों से संघर्ष करने वाली कान्ति बच्चों सहित विधवा बहु एवं उनके बच्चों का भी पालन-पोषण कर रही हैं। इसके साथ ही अपने पुत्र की मौत के बाद वे दो पौत्रों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रही हैं। कान्ति के हुनर को स्थानीय स्तर पर चैलेंज देने की अन्य वाहन मरम्मतकर्ताओं में होड़ लगी है।
मूलत: इलाहाबाद जिले के कर्नलगंज की रहने वाली कान्ति की शादी वर्ष 1977 में मिर्जापुर जनपद के वासलीगंज के रहने वाले मैकेनिक रामलाल विश्वकर्मा से हुई थी। शादी के पश्चात दोनों सिंगरौली मोरवा मेन रोड पर छोटी सी झोपड़ी बनाकर डीजल गाड़ी के इंजन मैकेनिक का काम शुरू किया। इस दौरान कान्ति देवी मरम्मत कार्य के दौरान हर समय पति के साथ रहकर हेल्पर का भी काम करने लगीं। धीरे-धीरे समय बीतता गया। अचानक उन पर उस समय मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा जब महज 35 वर्ष की उम्र में ही रामलाल विश्वकर्मा की हृदयाघात से मौत हो गई।
पति की मौत के बाद तीन छोटे-छोटे बच्चों की जिम्मेदारी कान्ति पर आ गई। शुरू में तो उनकी समझ में नहीं आया कि वे क्या करें। कुछ दिन बाद उन्होंने सोचा कि ऐसे काम नहीं चलेगा। पति के काम को देखते हुए उन्हें इंजन बनाने की बेसिक जानकारी हो गई थी। उन्होंने ठान लिया कि पति की विरासत को ही वे आगे बढ़ाएंगी। बड़ा पुत्र भी मां के काम में हाथ बटाने लगा। जिन्दगी की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी किन्तु शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2015 में सड़क हादसे में पुत्र आलोक की मौत से वे सदमे में आ गई। अब बहु व दो पोतों की भी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई थी। कहते हैं साहस के साथ मुसीबतों का सामना करने वालों का साथ ईश्वर भी देते हैं। पति व पुत्र की मौत के दु:ख ने उन्हें मरीज बना दिया। इसके बाद भी उन्होंने धैर्य का साथ नहीं छोड़ा तथा आज भी बदस्तूर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हुए परिवार को संवारने में जुटी हैं। अब उन्होंने मोबिल की दुकान भी खोल ली है। ऐसी साहसी महिला को नमन।