‘विश्वकर्मा’ घर-घर के भगवान

‘विश्वकर्मा’ घर-घर के भगवान
भगवान विश्वकर्मा घर-घर के भगवान तो हैं परन्तु आमतौर पर अभी इसकी मान्यता नहीं है। विश्वकर्मावंशी के साथ ही अन्य लोग भी भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं सिर्फ एक दिन 17 सितम्बर को। भगवान विश्वकर्मा की पूजा प्रतिदिन हर घर में अन्य देवी-देवताओं की भांति होनी चाहिये। इसकी शुरूआत विश्वकर्मावंशियों को ही करनी होगी। अभी तक तो यही देखने को मिलता है कि सिर्फ 17 सितम्बर को ही धूमधाम से पूजा होती है, बाकी दिन सिर्फ लक्ष्मी-गणेश और अन्य देवी देवताओं की पूजा होती है। मैं नहीं कहता कि लक्ष्मी-गणेश या अन्य देवी-देवताओं की पूजा न हो, मगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी तो होनी चाहिये। मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि विश्वकर्मावंशियों के ही तमाम ऐसे प्रतिष्ठान देखने को मिलते हैं जहां भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा तक नहीं होती, जबकि दूसरे देवी-देवताओं की प्रतिमा पूजा के मन्दिर में व दीवारों पर लगी होती है।
भगवान विश्वकर्मा सृष्टि के रचयिता हैं और सृष्टि के रचयिता की पूजा प्रतिदिन न हो यह आत्ममंथन करने वाली बहुत ही विचारणीय प्रश्न है। कण-कण में भगवान विश्वकर्मा, फिर भी यादों में सिर्फ एक दिन। मैं यह भी नहीं कहता कि सभी लोग सिर्फ एक दिन पूजा करते हैं परन्तु अधिकांश लोगों व परिवारों की हकीकत यही है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा सिर्फ प्रतिष्ठानों में ही नहीं, सामान्य घरों में भी प्रतिदिन होनी चाहिये। क्यों न इसके लिये सामाजिक संगठनों द्वारा एक मुहिम चलाई जाय, लोगों को इसके लिये जागरूक किया जाय। इस मुहिम को धार्मिक स्वरूप दिया जाय। धार्मिक प्रवृत्ति एक ऐसी विधा है जहां सभी के सिर नतमस्तक होते हैं। इस मुहिम से भगवान विश्वकर्मा को लोगों के घरों व दिलों में स्थापित किया जाय तो इसका एक बड़ा सार्थक परिणाम विश्वकर्मावंशियों की एकता के रूप में दिखेगी।
17 सितम्बर को भगवान विश्वकर्मा का पूजनोत्सव होता है। पूजनोत्सव का मतलब यह नहीं कि पूजा उसी दिन हो। पूजा प्रतिदिन होनी चाहिये। 17 सितम्बर को तो सिर्फ उत्सव मनाया जाता है। प्रतिदिन पूजा करने में कोई दिक्कत भी नहीं है। अन्य देवी-देवताओं के साथ ही भगवान विश्वकर्मा की फोटो पूजा के मन्दिर में रखने की आवश्यकता मात्र है। आज भी ग्रामीण इलाकों में विश्वकर्मावंशियों के घरों में भी लक्ष्मी, गणेश, शंकर, हनुमान, दुर्गा आदि की फोटो तो मिलती है परन्तु भगवान विश्वकर्मा की फोटो नहीं। आवश्यकता इसी जागरूकता की है कि हर घर में भगवान विश्वकर्मा की फोटो होनी चाहिये। गौर करने वाली बात है कि देवी-देवता तो दूर की बात, अपना प्रचार करवा कर कुछ इंसान ही भगवान की जगह ले लिये और वह अपने अनुयायियों के दिल और घर में स्थापित हो गये। जब प्रचार मात्र से इंसान की पूजा हो सकती है ‘विश्वकर्मा’ तो भगवान हैं उनकी पूजा क्यों नहीं? जिस दिन से भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर घर में होने लगेगी उसी दिन से विश्वकर्मावंशियों में एकता की लहरभी दिखाई पड़ने लगेगी।
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